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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?

राजसी आहार

कट्वम्ललवणात्युतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।

'कड़वा, खट्टा, नमकीन, बहुत गरम, तीखा, रूखा, जलन पैदा करनेवाला, ऐसे दुःख, शोक और रोग उत्पन्न करनेवाले आहार राजस लोगोंको प्रिय होते है।' राजसी आहारका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे मन तथा इन्द्रियोंपर पड़ता है। मनमें कुकल्पनाएँ वासनाकी उत्तेजना और इन्द्रियलोलुपता उत्पन्न होती है। मनुष्य कामी, क्रोधी, लालची और पापी बन जाता है; उसके रोग, शोक, दुःख, दैन्य अभिवृद्धिको प्राप्त होते हैं। मनुष्यकी आयु तेज, सामर्थ्य और सौभाग्यका तिरोभाव होता है। बुद्धि मलिन होती है।

राजसी आहारकी सूची देखिये

करेला, नीम, इमली, बहुत नमकीन, सोडा आदि क्षार गरम-गरम चीजें, राई, गरम मसाला, भाड़के भूजे पदार्थ, लाल मिर्च, तेलके तले हुए गरिष्ठ पदार्थ बाजारमें बिकनेवाली मिठाइयाँ रबड़ी, पूडी-कचौडियाँ मालपुआ, तली हुई दालें, अधिक मिर्च-मसालेवाले पदार्थ, उत्तेजक तरकारियाँ केवल जिह्वाके स्वादमात्रके लिये तैयार की गयी बाजारू चाटे, पकौड़ी, समोसे, दही-बड़े, खस्ता कचौड़ियाँ मसालेदार काबुली चने, चाय-ये सभी चीजें दुःख, चिन्ता और रोग पैदा करती हैं। इनके अतिरिक्त खानेका पान-चूना, तम्बाकू आदि भी राजसिक हैं।

हिन्दू-शास्त्रमें प्याज तथा लहसुन वर्जित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि ये उत्तेजना उत्पन्न करनेवाली तरकारियाँ है। ये तमोगुणी है। राजसी, तामसी, विलासी व्यक्ति इनका प्रयोग करते है, इनसे इन्द्रियाँ कामुक हो उठती है। इन्हें खानेवाले लोग विलासी, क्रोधी, विक्षुब्ध और उत्तेजनाओंमें फँसे रहते हैं। उनके मुँहसे दुर्गन्ध आती है।

दालोंमें उर्द-मसूर पौष्टिक होते हुए भी अपने गुणोंमें तामसिक हैं। यही कारण है कि हिन्दू मसूरकी दालसे परहेज करते हैं। वह ठाकुरजीके भोगमें निषिद्ध है। चटनियाँ अचार, तेल, खटाई, सोंठ भी राजसिक है। रोटीमें नमक डालकर पकानेसे वह भी मनकी राजसिक वृत्तिको प्रोत्साहित करती है। कुछ लोग बर्फके बिना पानी नहीं पी सकते; सोडा-लैमन बार-बार पीते है। आध्यात्मिक दृष्टिसे यह बुरा है। राजसी आहारसे मन चंचल, क्रोधी, लालची होता और विषय-वासनामे लगता है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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